संसद ने संविधान में संशोधन कर शिक्षा को आठवां मौलिक अधिकार बना तो दिया है लेकिन धन की कमी का बहाना कर गुजरात , छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश, बिहार जैसे अनेक राज्य इसे लागू करने में ढ़ील बरत रहे हैं । सन 1951 में देश में साक्षरता दर केवल 16 प्रतिशत थी जो 2001 की जनगणना में 65.38 प्रतिशत हो गई। मतलब साक्षरता दर एक दशक में केवल 10 प्रतिशत के औसत से बढ़ी । 1950 में संविधान लागू करते समय राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों में कहा गया था कि शिक्षा को 10 वर्ष के भीतर मौलिक अधिकार बना दिया जाएगा लेकिन यह काम 60 वर्ष बाद हो पाया। 1976 में शिक्षा को समवर्ती सूची में डाल दिया गया था जिस कारण आरटीई लागू करने की साझा जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की हैं। उदारीकरण का दौर आने के बाद प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में निजी स्कूलों की भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है। निजी स्कूलों के कारण ही वर्ष 1991-2001 के बीच साक्षरता दर 13 फीसदी बढ़ी जो सर्वाधिक है। आज देश में 85 प्रतिशत सरकारी स्कूल हैं जबकि निजी स्कूलों की संख्या केवल 15 प्रतिशत है । आरटीई जैसे महाभियान पर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के बिना अमल असंभव है। अप्रैल 2010 से लागू शिक्षा का अधिकार कानून पर पूरी तरह से अमल के लिए तीन वर्ष की समय सीमा तय की गई है। कानून पर अमल सुनिश्चित करने के लिए दैनिक भास्कर यह अभियान चला रहा है। -यतीश राजावत मैनेजिंग एडिटर,दैनिक भास्कर
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